विपणन विचारधारा से आप क्या समझते हैं ? विपणन की विभिन्न अवधारणाओं को स्पष्ट कीजिए | What do you understand by marketing concept ? Explain the various concepts of marketing

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विपणन की अवधारणा | Concepts of Marketing

सामान्य शब्दों में विपणन का आशय वस्तुओं के क्रय और विक्रय से लगाया जाता है, किन्तु वर्तमान समय में इसका उपयोग व्यापक अर्थ में किया जाता है। इसमें क्रय-विक्रय के पूर्व तथा बाद की भी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार विपणन में क्रय-विक्रय के अतिरिक्त सामाजिक उत्तरदायित्व को भी शामिल किया जाता है। इस प्रकार विपणन के अर्थ के सम्बन्ध में मतभेद पाया जाता है। इसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं पायी जाती है।

विपणन की विभिन्न अवधारणाएँ | Various Concept of Marketing

विभिन्न अवधारणाओं को निम्न भागों में विभाजित किया गया है

1. उपयोगिता सृजन की अवधारणा (Concept of Utilities Creation)- विपणन की इस प्रमुख अवधारणा के समर्थक रिचर्ड वसकिर्क (Richard Vuskirk) हैं। कुछ विद्वानों ने विपणन को सृजन करने वाली क्रिया बताया है। उनका मत है कि विपणन एक व्यवस्था है। जिसके माध्यम से मूल्य में वृद्धि की जाती है। इस विचारधारा से सम्बन्धित कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार दी गयी है

प्रो. रिचर्ड वसकिर्क के अनुसार, “विपणन एक ऐसी प्रणाली है जो रूप, स्थान, समय एवं अधिकार उपयोगिता के सृजन द्वारा वस्तुओं में मूल्य उत्पन्न करती है।” प्रो. कनवर्स ह्यूजी एवं मिचेल के शब्दों में, “विपणन अर्थशास्त्र का वह भाग है जिसमें स्थान, समय एवं अधिकार उपयोगिता का अध्ययन किया जाता है।” वास्तव में यह बात सत्य पायी जाती है कि विपणन क्रियाएँ उपयोगिता का सृजन करके वस्तुओं को पहले से अधिक मूल्यवान बनाती है, किन्तु यह परिभाषा केवल एक क्रिया पर ही ध्यान देती है तथा अन्य क्रियाओं पर; जैसे-सामाजिक दायित्व आदि पर ध्यान नहीं देती है। इसी कारण यह परिभाषा अच्छी नहीं मानी जाती है। इस प्रकार उपयोगिता सृजन अवधारणा या विचारधारा के अनुसार, ऐसी प्रत्येक क्रिया जिसके द्वारा वस्तुओं की उपयोगिता एवं मूल्यों में वृद्धि की जाती है, विपणन के अन्तर्गत शामिल की जाती है।

2. वस्तुओं के वितरण की अवधारणा | Concept to Distribution of Goods

विपणन की इस अवधारणा की प्रमुख समर्थक अमेरिकन मार्केटिंग एसोसियेशन (American Marketing Association) है। इस अवधारणा या विचारधारा के अनुसार विपणन में उन सभी प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है जो कि वस्तुओं या सेवाओं को उसके उत्पादन से उपभोक्ता या प्रयोगकर्ता तक पहुँचाने हेतु सम्पन्न की जाती हैं, जैसे-परिवहन, भण्डारण, श्रेणी विभाजन आदि। वस्तुओं के वितरण सम्बन्धी परिभाषाओं के अन्तर्गत उनको लिया जाता है जिनका सम्बन्ध वस्तुओं को उत्पादन से उपभोक्ता तक पहुँचाने में मदद करना होता है। इससे सम्बन्धित कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं

(1) अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार, “विपणन से तात्पर्य उन व्यावसायिक क्रियाओं के निष्पादन से है जो उत्पादन से उपभोक्ता तक वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रवाह को क्रियान्वित करती है।”

(2) टाउसले क्लार्क एवं क्लार्क के अनुसार, “विपणन से आशय उन क्रियाओं तथा प्रयत्नों से है, जो वस्तुओं तथा सेवाओं के स्वामित्व हस्तान्तरण तथा भौतिक वितरण में सहायक होते हैं।” उपर्युक्त विचारधारा वाली समस्त परिभाषाएँ पर्याप्त समय तक मान्य तथा उत्तम मानी जाती थी, परन्तु आज वैज्ञानिक तथा प्रगतिशील विपणन प्रणाली में इनकी उपयोगिता कम हो गयी है। इसका कारण यह है कि इन परिभाषाओं में विक्रय के बाद दी जाने वाली सेवाओं का कोई उल्लेख नहीं पाया जाता है। साथ-ही-साथ इसमें सामाजिक उत्तरदायित्व को कोई महत्व या स्थान नहीं दिया गया है।

3. जीवन स्तर की अवधारणा (Concept of Standard of Living)

विपणन की इस अवधारणा का श्रेय पॉल मजूर (Paul Mazur) को दिया जाता है। इस अवधारणा के अनुसार विपणन के अन्तर्गत उन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है जो कि उपभोक्ताओं को श्रेष्ठतम किस्म की वस्तुएँ उपलब्ध कराने में सहायता प्रदान करती है। कुछ विद्वानों ने विपणन को जीवन स्तर प्रदान करने सम्बन्धी क्रियाओं से जोड़ा है। उनका कथन है कि उत्पादक नई-नई वस्तुओं का उत्पादन करके उनके उपयोग में वृद्धि करता है तथा इससे समाज का जीवन स्तर ऊँचा होता है। इसमें निम्न परिभाषाएँ आती है प्रो. पॉल मजूर के अनुसार, “विपणन का अर्थ समाज को जीवन स्तर प्रदान करना है।” मैल्कम मैक्नेयर के अनुसार, “विपणन से आशय जीवन स्तर को सृजनात्मक बनाने तथा उसे प्राप्त करने से है।” उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि विपणन एक पूर्ण क्रिया है। विपणन के अनेक महत्वपूर्ण कार्यों में से मूल्य निर्धारण भी उसका ही एक अंग है। विपणन की यह अवधारणा ग्राहक अभिमुखी अथवा नवीन अवधारणा अथवा आधुनिक अवधारणा भी कहलाती है, क्योंकि इसके अन्तर्गत उत्पाद की अपेक्षा ग्राहक को अधिक प्राथमिकता एवं मान्यता प्रदान की गयी है। अतः वस्तु का निर्माण करने से पूर्व ग्राहकों की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं का अध्ययन किया जाता है एवं तत्पश्चात् वस्तु का निर्माण करके उपभोक्ताओं को उपलब्ध करायी जाती है।

4. प्रणाली सम्बन्धी अवधारणा | Concept Related to System

विपणन की इस अवधारणा के प्रमुख समर्थक विलियम जे. स्टैण्टन (William J. Stanton) हैं। इस अवधारणा के अनुसार विपणन एक प्रणाली के रूप में है जिसमें एक-दूसरे को प्रभावित करती है। इसमें उन क्रियाओं को शामिल किया जाता है जो परस्पर सम्बन्धित है और इस विचारधारा के मानने वालों का कथन है कि विपणन एक व्यवसाय की सम्पूर्ण व्यवस्था है जिसमें समस्त व्यावसायिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। इस दृष्टिकोण से सम्बन्धित कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार से है प्रो. स्टॉण्टन के अनुसार, “विपणन का अर्थ उन पारस्परिक व्यावसायिक क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली है जो कि वर्तमान एवं सम्भावित ग्राहकों को उनकी आवश्यकता सन्तुष्टि की वस्तुओं तथा सेवाओं के बारे में योजना बनाने, मूल्य निर्धारण करने, सम्बर्द्धन करने तथा वितरण करने के लिए भी की जाती है।” डॉ. कैडिक एवं स्टिल के अनुसार, “विपणन वह प्रबन्धकीय क्रिया है, जिसके द्वारा बाजारों की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद बनाये जाते हैं तथा उनके स्वामित्व का हस्तान्तरण किया जाता है।” उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि इस विचारधारा के अन्तर्गत विपणन में सभी व्यावसायिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। इसका विपणन में महत्वपूर्ण स्थान है।

5. उपभोक्ता सन्तुष्टि सम्बन्धी अवधारणा | Concept Related to Consumer’s Satisfaction

विभिन्न विद्वानों का मत है कि उपभोक्ता की सन्तुष्टि विपणन की आधारशिला है। इसका कारण यह है कि उपभोक्ता ही बाजार का राजा होता है। उसी में सार्वभौमिकता निहित होती है। उपभोक्ता की सन्तुष्टि से सम्बन्धित कुछ परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं प्रो. मैकार्थी के अनुसार, “उपभोक्ता माँगों की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पादन योजनाओं को समायोजित करने की आवश्यकता का व्यापारियों द्वारा दिया जाने वाला उत्तर विपणन कहलाता है।” डॉ. फिलिप कोटलर के अनुसार, “विपणन मानवीय क्रियाओं का समूह है, जो विनिमय को पूर्ण तथा निर्देशित करता है।” उपर्युक्त परिभाषाओं का सम्बन्ध आधुनिक विचारधारा से है। इसके अनुसार उत्पादन को उपभोक्ताओं के अनुसार किया जाता है। इसके लिए उपभोक्ताओं की रुचि तथा आदत का पता लगाया जाता है। इसमें यह बात भी पायी जाती है कि उत्पादकों को लाभ की प्राप्ति उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि के बाद ही होती है।

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Ashok Kumar Gupta
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