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विपणन की उपयोगिता सृजन सम्बन्धी अवधारणा | Marketing Concept Related to Creation
विपणन की इस महत्वपूर्ण अवधारणा के प्रमुख समर्थक रिचर्ड यसकिर्क (Richard Vuskirk) है। प्रस्तुत अवधारणा के अनुसार विपणन में ये सब क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं जो कि स्थान, समय और स्वामित्व की उपयोगिता की उत्पत्ति में लगी हुई है। स्थान उपयोगिता उस समय उत्पन्न होती है जबकि माल और सेवा उस स्थान पर प्राप्त है जहाँ पर कि आवश्यक है, समय उपयोगिता जबकि उनकी आवश्यकता है और स्वामित्व उपयोगिता, जबकि वे उनको स्थानान्तरित की जाती है जिनको कि उनकी आवश्यकता है।
यह उपर्युक्त विचार डॉ. सी. बी. मेमोरिया (Dr. C. B. Mamoria) द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं। इनका कहना है कि विपणन क्रियाएँ माल और सेवाओं को, जबकि उनकी माँग की जाती है, अधिक उपयोगी बनती है और उन लोगों को तथा उन स्थानों पर भेजी जाती हैं जो कि उनको चाहते हैं। अतः कहा जा सकता है कि विपणन क्रियाएँ केवल माँग और पूर्ति के बीच सन्तुलन ही स्थापित नहीं करती बल्कि यह का सृजन भी करती हैं। विपणन समय, स्थान, रूप तथा स्वामित्व परिवर्तन द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में महत्वपूर्ण वृद्धि करता है।
विपणन एवं रूप उपयोगिता (Marketing and Forms Utility)
कोई भी वस्तु उपभोक्ता के लिए तभी उपयोगी हो सकती है, जबकि उसका रूप परिवर्तन इस प्रकार किया जाये कि वह और अधिक तथा प्रभावी ढंग से आवश्यकताओं की सन्तुष्टि कर सके। उदाहरण के लिए-कपास को धागे या कपड़े के रूप में, लकड़ी को फर्नीचर के रूप में, गन्ने को गुड़ या चीनी के रूप में परिवर्तित कर उसकी उपयोगिता में वृद्धि की जा सकती है। इस कार्य के लिए विपणन, उत्पादन, नियोजन और विकास का सहारा लेता है।
विपणन एवं स्थान उपयोगिता | Marketing and Place Utility
स्थान उपयोगिता से आशय उपयोगिता के विकास के उस पहल से होता है जो किसी वस्तु में स्थान के बदल जाने से उत्पन्न हो अर्थात् वस्तु की उपयोगिता उस स्थान पर अधिक होगी जहाँ पर उपभोक्ता चाहता है, न कि वहाँ पर जहाँ कि उत्पादक यह स्वाभाविक है कि जहाँ पर वस्तु की अधिकता होगी वहाँ वस्तु की उपयोगिता भी कम होगी। अतः वस्तुओं को ऐसे स्थान पर भेज देने से जहाँ उनकी माँग अधिक है, मूल्य ज्यादा प्राप्त होता है। यही अधिक मूल्य स्थान उपयोगिता है। थोक व्यापारी एवं फुटकर विक्रेता आदि वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थानों में स्थानान्तरण करने में विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखते हैं कि कहाँ वस्तुओं की अच्छी माँग है अर्थात् ऐसे स्थान पर माल भेजा जाता है जहाँ अधिक लाभ मिल सके यह लाभ उपयोगिता वृद्धि पर ही निर्भर करता है।
विपणन एवं समय उपयोगिता | Marketing and Time Utility
वस्तु को ठीक समय पर उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराना उसकी उपयोगिता में वृद्धि करना है। बहुत-सी वस्तुएँ ऐसी होती हैं जो किसी विशेष मौसम में अत्यधिक मात्रा में उत्पन्न की जाती है लेकिन उनके उत्पादन की माँग किसी विशेष मौसम में होती है। ऐसी स्थिति में वस्तु का संग्रह करना आवश्यक हो जाता है कि उन वस्तुओं की पूर्ति ऐसे समय में भी की जा सके जबकि वह वस्तु उत्पन्न नहीं होती। अतः संग्रह ही विपणन की वह क्रिया है जो एक-दूसरे समय तक वस्तुओं का हस्तान्तरण कर उसमें उपयोगिता वृद्धि कर देता है। उदाहरणतः-गेहूँ एक विशेष मौसम गर्मी में पैदा होता है, परन्तु उसकी माँग वर्षभर होती है। अतः सम्पूर्ण वर्ष में इसकी पूर्ति बनी रहे, इसके लिए आवश्यक है कि अधिक गेहूँ को सुरक्षित रखा जाए। इस सुरक्षा व्यय के कारण ही अन्य मौसमों में गेहूँ के मूल्यों में वृद्धि हो जाती है। कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनकी उपयोगिता समय बीतते जाने के साथ ही बढ़ती है; जैसे-चावल, शराब आदि।
विपणन एवं अधिकार उपयोगिता | Marketing and Right Utility
अधिकार उपयोगिता का सृजन विनिमय कार्य द्वारा सम्पन्न होता है अर्थात् एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को देना विनिमय है या वस्तु पर उपभोग का अधिकार प्रदान करना जिससे वह उसका प्रभावी उपयोग कर सके, अधिकार उपयोगिता है। वैधानिक रूप में विपणन की परिभाषा ही इस प्रकार से दी गई-“विपणन में वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो वस्तुओं एवं सेवाओं के स्वामित्व एवं अधिकार के हस्तान्तरण से सम्बन्धित है।” यदि किसी अनपढ़ व्यक्ति को पेन दे दिया जाये तो उसके लिए पेन की कोई उपयोगिता नहीं है और यदि वही पेन किसी लेखक को दिया जाये तो उसके लिए अधिक उपयोगी होगा। इसी हस्तान्तरण को अधिकार उपयोगिता कहता है। इस हस्तान्तरण में विपणन की समस्त क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं, जैसे-उत्पादक से थोक विक्रेता, योक विक्रेता से फुटकर विक्रेता, फुटकर विक्रेता से उपभोक्ता आदि। इस प्रकार स्पष्ट है कि विपणन क्रियाओं का वस्तु के रूप, स्थान, समय एवं स्वामित्व (अधिकार) उपयोगिता से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसी कारण उपर्युक्त परिभाषा में विपणन को इन उपयोगिता का सृजन कहा गया है।