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सीमा शुल्क से क्या अभिप्राय है ? सीमा शुल्क की प्रकृति एवं उद्देश्य बताइये | What do you mean by Custom Duty, Write nature and types of custom Duty

1843
केन्द्रीय सीमा शुल्क से सम्बन्धित पदाधिकारियों के कार्यों, अधिकारों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए | Describe the functions, rights and powers of authorities related to central customs duty

सीमा शुल्क से क्या अभिप्राय है सीमा शुल्क की प्रकृति एवं उद्देश्य बताइये

Table of Contents

  • सीमा शुल्क का आशय एवं परिभाषा Meaning and Definition of Custom Duty
  • सीमा शुल्क के उद्देश्य Objectives of Custom Duty-
  • केन्द्रीय सीमा शुल्क की प्रकृति एवं विशेषताएँ Nature and Characteristics of Custom Duty
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सीमा शुल्क की भूमिका Role of Customs in International Trade
  • सीमा शुल्क के दोष Demerits of Custom Duty
  • सीमा शुल्क के प्रकार Types of Custom Duty
  • आयातित माल पर ‘सामाजिक कल्याण अधिभार’ ‘Social Welfare Surcharge’ on Imported Goods
  • सीमा शुल्क अधिनियम के अन्तर्गत आयात व निर्यात पर निषेध Prohibitions on Imports and Exports Under Custom Act–

सीमा शुल्क का आशय एवं परिभाषा Meaning and Definition of Custom Duty

सीमा शुल्क विश्व का सबसे प्राचीन कर है। इस कर के प्रमाण वैदिक काल से ही मिलते हैं। यह कर वस्तुओं के आयात-निर्यात पर लगाया जाता है, लेकिन इसका नाम कस्टम ड्यूटी या सीमा शुल्क है। सीमा शुल्क देश में होने वाले आयातों एवं देश से होने वाले निर्यातों पर लगाया जाने वाला कर है। सीमा शुल्क अधिनियम को सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया है। प्रो. जे के मेहता के अनुसार, “सीमा कर इतिहास में अति प्राचीन करों में से एक है जो उस समय व्यापारियों के लाभ पर एक कर के रूप में लगाया जाता था, परन्तु आजकल के ये कर लाभ पर न लगाकर उत्पादन करों की भांति वस्तुओं पर लगाया जाता है।” अतः उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर कहा जा सकता है कि सीमा शुल्क देश में आयात किए जाने वाले माल पर तथा देश से निर्यात किए जाने वाले माल पर लगाया जाने वाला कर है।

सीमा शुल्क के उद्देश्य Objectives of Custom Duty-

Read moreDefine strategy or barricade. Describe the steps to be taken under strategy formulation. taken the formulation ?

सीमा शुल्क देश में वस्तुओं के आयात एवं देश से निर्यात होने वाली वस्तुओं पर निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लगाया जाता है-

(1) राजस्व प्राप्त करना- सीमा शुल्क का मूल उद्देश्य राजस्व प्राप्त करना होता है। वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आकार, विस्तार एवं मात्रा बहुत अधिक बढ़ गए हैं जिससे बहुत अधिक मात्रा में विदेशी व्यापार होता है। ऐसे व्यापार पर करारोपण कर सरकार पर्याप्त मात्रा में राजस्व संग्रह करती है।

(2) देशी उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना- सीमा शुल्क लगाने का प्रमुख उद्देश्य राजस्व प्राप्त करना ही नहीं है अपितु देशी उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण प्रदान करना भी है। सरकार द्वारा आयात शुल्क की दर को बढ़ाकर विदेशी माल को महंगा कर दिया जाता है जिससे घरेलू उत्पाद विदेशी माल से प्रतियोगिता कर सकें।

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(3) डम्पिंग पर रोक लगाना-विदेशी उत्पादकों द्वारा बाजार हथियाने के उद्देश्य से एवं अन्य निर्माताओं को बाजार से बाहर कराने के लिए डम्पिंग की क्रिया अपनाते हैं अर्थात् अपना माल लागत से कम मूल्य पर बेचते हैं या बहुत नीचे मूल्य पर बेचते हैं। ऐसी गलाकाट प्रतियोगिता से देशी उद्योगों एवं व्यापार को बचाने के लिए सरकार आयात शुल्क में वृद्धि करती है।

(4) विलासिता की वस्तुओं पर विदेशी मुद्रा के अपव्यय पर रोक लगाना-कई विलासिता की वस्तुएँ विदेशों में सस्ती एवं अच्छी किस्म की तैयार होती हैं। ऐसी वस्तुओं का आयात अधिक होने पर बहुमूल्य मुद्रा का अपव्यय होता है। सरकार द्वारा इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखकर विलासिता की वस्तुओं पर अधिक ऊँची दर से सीमा शुल्क लगाया जाता है।

(5) विदेशी व्यापार सम्बन्धी समझौते का क्रियान्वयन-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते की शर्तों के अनुसार, पारस्परिक रूप से सीमा शुल्क की दर निर्धारित एवं नियमित की जाती है। इन दरों को ध्यान में रखकर विभिन्न देशों के मध्य पारस्परिक संधि एवं द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते होते हैं।

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(6) तस्करी पर नियन्त्रण लगाना-विदेशों से अवैध रूप से माल के आयात अथवा से अवैध रूप से माल के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने हेतु सीमा शुल्क अधिनियम के अन्तर्गत महत्वपूर्ण प्रावधान बनाये गये हैं। साथ ही मादक पदार्थों, स्वर्ण एवं अन्य विलासिता की वस्तुओं की तस्करी रोकने के लिए सीमा शुल्क अधिनियम के अन्तर्गत प्रभावी प्रावधान किये गये हैं।

केन्द्रीय सीमा शुल्क की प्रकृति एवं विशेषताएँ Nature and Characteristics of Custom Duty

केन्द्रीय सीमा शुल्क की प्रकृति एवं मुख्य विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

1. केन्द्रीय कर- भारतीय संविधान में विदेशों से आयात किये जाने एवं भारत से बाहर निर्यात किये जाने वाले माल पर कर लगाने का अधिकार केन्द्र को दिया गया है। इस संवैधानिक अधिकार के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा देश में वस्तुओं के आयात एवं निर्यात पर सीमा शुल्क लगाया जाता है।

2. अप्रत्यक्ष कर-सीमा शुल्क एक अप्रत्यक्ष कर है। इसका भुगतान आयातकर्ता या निर्यातकर्ता द्वारा किया जाता है, लेकिन इसका अन्तिम भार उपभोक्ता पर पड़ता है। अन्य अप्रत्यक्ष करों की तरह इस कर के भी कुछ गुण-दोष हैं।

3. सीमा शुल्क के आधार-सीमा शुल्क लगाने के निम्न दो आधार है (1) वस्तुओं का विदेशों से भारत में आयात (2) वस्तुओं का भारत से बाहर अन्य देशों को निर्यात

4. सीमा शुल्क के उद्देश्य- सीमा शुल्क का मूल उद्देश्य विदेशी व्यापार के अन्तर्गत विदेशों से मँगाए जाने वाले माल अर्थात् आयात तथा विदेशों को भेजे जाने वाले माल अर्थात् निर्यात पर कर वसूलना होता है। इसके अलावा कई अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी सीमा शुल्क लगाया जाता है, जैसे-आयातों को नियंत्रित करना तथा निर्यातों को प्रोत्साहित करना आदि।

5. सीमा शुल्क की दरें- आर्थिक उदारीकरण एवं विश्व व्यापार में वैश्वीकरण की नीति के पूर्व भारत में सीमा शुल्क की दरें अत्यधिक ऊँची थी। कई विदेशी वस्तुओं के मूल्य पर चार-पाँच गुना तक आयात शुल्क लगाया जाता था, ताकि विदेशी वस्तुएँ इतनी महँगी हो जायें कि उपभोक्ता उन्हें खरीदने के लिए। निरुत्साहित हो, लेकिन खुले व्यापार की नीति के अन्तर्गत भारत सरकार के आयात शुल्क की दरों में निरन्तर कमी की है।

6. राजस्व में योगदान- सीमा शुल्क का भारत सरकार की राजस्व प्राप्तियों में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। केन्द्रीय उत्पाद शुल्क के बाद सीमा शुल्क ही ऐसा अप्रत्यक्ष कर है जिससे भारत सरकार को पर्याप्त राजस्व प्राप्त होता है।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सीमा शुल्क की भूमिका Role of Customs in International Trade

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सीमा शुल्क की प्रभावी भूमिका होती है। सरकार की आयात निर्यात कर नीति पर उस देश के विदेशी व्यापार की मात्रा एवं प्रकृति निर्भर करती है। सीमा शुल्क सरकार के लिए केवल आय प्राप्त का ही स्रोत नहीं है, बल्कि अपनी विदेशी व्यापार वाणिज्य नीति को लागू करने का महत्त्वपूर्ण उपकरण है। सरकार आयातों पर आयात शुल्क लगाकर विदेशी माल को देश में आने के लिए नियंत्रित करती है तो निर्यात शुल्क में मुक्ति या छूट देकर निर्यातों को प्रोत्साहित करने के प्रयास करती है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार या किसी देश के आयात-निर्यात में सीमा शुल्क की भूमिका को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) राजस्व में योगदान- सीमा शुल्क का भारत सरकार की राजस्व प्राप्तियों में महत्वपूर्ण योगदान होता है। केन्द्रीय उत्पाद शुल्क के बाद सीमा शुल्क ही ऐसा अप्रत्यक्ष कर है जिससे भारत सरकार को पर्याप्त राजस्व प्राप्त होता है। यद्यपि आयात शुल्क की दरों में काफी कमी कर दी गई है, लेकिन विदेशी व्यापार के बढ़ते हुए आकार के कारण इससे प्राप्त राजस्व में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

(2) घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करना- आयात शुल्क लगाने का प्रमुख कारण राजस्व प्राप्त करना ही नहीं है अपति घरेलू उद्योगों को विदेशी माल की प्रतियोगिता से संरक्षण प्रदान करना भी है। सरकार आयात शुल्क के प्रकार एवं दर बढ़ाकर अपने यहां विदेशी माल महंगा कर देती है ताकि घरेलू उत्पादन विदेशी माल से संरक्षित रह सके।

(3) व्यापार घाटे को सन्तुलित करना– जब किसी देश का आयात बहुत बढ़ जाता है और निर्यात कम हो जाता है तो विदेशी मुद्रा में भुगतान करने में असुविधा होने लगती है। इससे बचने के लिए आयात पर आयात शुल्क लगाकर आयात महंगा किया जाता है तथा अपने देश से निर्यात माल पर छूट देकर निर्यात माल सस्ता कर दिया जाता है जिससे व्यापार घाटा कम किया जा सके।

(4) तस्करी पर नियन्त्रण करना- जब आयात शुल्क की दरें बहुत ऊँची होती हैं तो तस्करों को बढ़ावा मिलता है क्योंकि तस्करी करके लाए गए माल पर लाभ की दर बढ़ती है। इसका स्पष्ट प्रमाण है कि जब से सोने पर आयात शुल्क कम किया गया है, सरकारी राजस्व बढ़ रहा है और तस्करी कम हो रही है।

(5) विदेशी मुद्रा की बचत करना- धनाढ्य वर्ग विलासिता की वस्तुओं के आयात पर काफी विदेशी मुद्रा व्यय कर देता है परिणामस्वरूप आवश्यक वस्तुओं एवं देश की रक्षा से सम्बन्धित साज-सामान के लिए विदेशी मुद्रा की कमी हो जाती है। इस समस्या से बचने के लिए सरकार विलासिता की वस्तुओं पर ऊँची दर से आयात शुल्क लगाकर इनकी मांग में कमी करने का प्रयास करती है।

(6) डम्पिंग पर रोक लगाना–विदेशी उत्पादक भारत जैसे बड़े उपभोक्ता बाजार को हड़पने के लिए अपने उत्पाद को लागत से भी कम मूल्य पर ‘डम्प’ कर सकते हैं। ऐसी ‘डम्पिंग’ से बचाव के लिए सरकार Anti-Dumping Duty नाम से अतिरिक्त आयात शुल्क लगाकर घरेलू उद्योगों का संरक्षण करती है।

सीमा शुल्क के दोष Demerits of Custom Duty

यद्यपि सीमा शुल्क से सरकार को पर्याप्त आय होती है एवं आयात-निर्यात पर नियंत्रण लगाने में सहायता प्राप्त होती है, फिर भी यह कर अर्थव्यवस्था पर कुछ बुरे प्रभाव भी डालता है-

1. तस्करी को प्रोत्साहन आयात कर की ऊँची दरों के कारण तस्करी को प्रोत्साहन मिलता था। पिछले कुछ वर्षों में आयात करों में भारी कमी के कारण स्वर्ण एवं विलासिता की वस्तुओं की तस्करी में काफी कमी आयी है। सीमा शुल्क की वैधानिक औपचारिकताएँ इतनी अधिक है कि अब भी बड़ी मात्रा में माल तस्करी के माध्यम से भारत में आता है।

2. भ्रष्टाचार को बढ़ावा- सीमा शुल्क से भ्रष्टाचार को काफी बढ़ावा मिलता है। ड्यूटी की चोरी करने या आयातित वस्तु का मूल्य कम बताकर शुल्क बचाने के लिए आयातक सीमा शुल्क अधिकारियों को रिश्वत देते हैं, इससे राजस्व की हानि होती है।

3. जटिलता-सीमा शुल्क अधिनियम के प्रावधान बहुत जटिल एवं कठिन है, इसलिए आयातको एवं निर्यातकों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

4. श्रेष्ठ विदेशी वस्तुओं के उपयोग से वंचित ऊँची आयात दरों के कारण जनता विदेशों की सस्ती एवं अच्छी किस्म की वस्तुओं का उपभोग कर पाती है। उन्हें घटिया किस्म की देशी वस्तुओं का उपयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ता था। आयात शुल्क में काफी कमी होने के कारण इस दोष का निवारण हो गया है।

5. देशी उद्योगों का पतन उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति के कारण सरकार को कई ऐसी वस्तुओं के आयात पर कर दरों में कमी करना पड़ी है, जिनका भारत में भी पर्याप्त उत्पादन होता है। ऐसी स्थिति में भारतीय उद्योगों को विदेशी माल से कड़ी स्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है। कई देशी उद्योग इस कारण बन्द हो गये हैं या घाटे में चल रहे हैं।

सीमा शुल्क के प्रकार Types of Custom Duty

सीमा शुल्क किसी माल के भारत से बाहर निर्यात एवं भारत में आयात पर लगाया जाता है। इस दृष्टि से सीमा शुल्क को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) आयात शुल्क (Import Duty)- भारत में विदेशों से आयातित माल पर केवल एक प्रकार का सीमा शुल्क नहीं लगता, बल्कि निम्न प्रकार से यह शुल्क आरोपित किया जाता है

(i) मूल सीमा शुल्क (Basic Customs Duty)- यह शुल्क वस्तु के कर निर्धारण मूल्य पर लगाया जाता है इसकी सामान्य दर 10% है।

आयातित माल पर ‘सामाजिक कल्याण अधिभार’ ‘Social Welfare Surcharge’ on Imported Goods

वित्त अधिनियम, 2018 से पूर्व 2% शिक्षा उपकर एवं 1% उच्चतर शिक्षा उपकर आयातित माल पर उद्ग्रहणीय सीमा शुल्क पर प्रभावी था। दिनांक 00-02-2018 की प्रभावी तिथि से ऐसा शिक्षा उपकर विलोपित करके उसके स्थान पर, मूल सीमा शुल्क के 10% समकक्ष राशि “सामाजिक कल्याण अधिभार” (Social Welfare Surchage) के रूप में भारत में आयातित माल पर लागू कर दी गयी। ऐसे अधिभार का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी योजनाओं के दिन पोषण में किया जाना है।

(ii) इन्टीग्रेटेड टैक्स (Integrated Tax)-सीमा शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 की धारा 37 के अधीन उद्ग्रहणीय इस कर का करारोपण निम्न प्रकार होता है (a) IGST Act, 2017 की धारा 5 के अधीन उसी प्रकार के माल की भारत में पूर्ति की स्थिति में लागू सीमा शुल्क दर के बराबर उद्गृहीत किया जाता है। आयातित माल का निर्धारण मूल्य उस पर देय सीमा शुल्क तथा लागू ‘सामाजिक कल्याण अधिभार के योग पर संगठित किया जाता है। (b) माल के आयात पर मूल सीमा शुल्क के अतिरिक्त (c) अधिकतम दर 40% सकती है।

(iii) जी. एस. टी. क्षतिपूर्ति उपकर (GST Compensation Cess)- जी. एस. टी. क्षतिपूर्ति उपकर अधिनियम, 2017 की धारा 8 के अधीन उद्ग्रहणीय यह एक उपकर है, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित विशिष्ट माल या पूर्तियों पर उद्ग्रहणीय है। इसका उद्ग्रहण निम्न मूल्य पर किया जाता है –

(2) एन्टी-डंपिंग शुल्क (Anti-dumping Duty)- कई बार बड़े विदेशी निर्माताओं द्वारा देशी बाजार हड़पने के लिए अपने माल को स्थानीय उत्पादकों की तुलना में काफी कम मूल्य पर निर्यात किया जाता है। इसे डंपिंग कहते हैं। इस स्पर्द्धा में स्वदेशी उद्योग टिक नहीं पाते एवं बन्द होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए सम्बन्धित वस्तुओं के आयात पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाई जाती है। यह ड्यूटी वस्तु के सामान्य मूल्य एवं विदेशी निर्यातक द्वारा लगाये जाने वाले कम मूल्य के अंतर के बराबर होती है, ताकि आयातित वस्तु का मूल्य स्वदेश में उत्पादित माल केमूल्य के बराबर हो जाए। यह शुल्क अन्य सीमा शुल्कों से अतिरिक्त होगी।

हम्पिंग का आशय-

निर्यातक बाजार में सामान्य मूल्य >निर्यात मूल्य=मूल्यांतर

GATT के प्रावधानों के अनुरूप एण्टी डम्पिंग शुल्क की राशि मूल्यांतर की राशि से अधिक नहीं हो सकती है।

एण्टी डम्पिंग शुल्क की गणना-

(a) डम्पिंग मार्जिन-सामान्य मूल्य एवं निर्यात मूल्य के अन्तर को डम्पिंग मार्जिन कहा जाता है, जिसको सामान्यतः निर्यात मूल्य के प्रतिशत रूप में व्यक्त किया जाता है

डम्पिंग मार्जिन=सामान्य मूल्य-निर्यात मूल्य

(b) निर्यात मूल्य- भारत में आयतित माल के सम्बन्ध में निर्यातक द्वारा वसूल निर्यात मूल्य

(c) सामान्य मूल्य- निर्यातक देश द्वारा सामान्य उपभोग के लिए वसूलनीय सामान्य व्यापारिक मूल्य

(3) अधिमानी दर से सीमा शुल्क (Duty at preferential rate)- केन्द्रीय सीमा शुल्क की प्रथम अनुसूची के अंतर्गत सामान्य दर एवं अधिमारी दर (Preferential rate) से सीमा शुल्क का संग्रहण किया जाता है। अगर आयातक आयात करते वक्त यह दावा करता है कि वह वस्तु जिसका वह आयात कर रहा है, वह अधिमानी क्षेत्र (Preferential area) में निर्मित की जा रही है, तो उस पर अधिमानी दर लगेगी। अधिमानी दर सामान्य दर से कम होती है।

(4) संरक्षण शुल्क (Safeguard Duty)-  यदि केन्द्रीय सरकार छानबीन करके सन्तुष्ट है कि किसी वस्तु का आयात बहुत अधिक मात्रा में हो रहा है और इसके परिणामस्वरूप घरेलू उद्योग को खतरा उत्पन्न हो गया है तो वह अधिसूचना जारी करके उस आयातित माल पर संरक्षण शुल्क लगा सकती है। यदि केन्द्रीय सरकार को लगता है कि छानबीन करने में काफी समय लग सकता है तो अनंतिम (Provisional) संरक्षण शुल्क लगा सकती है, परन्तु अनंतिम संरक्षण शुल्क उस तिथि से जब यह लगाया गया है दो सौ से अधिक दिन प्रभावी नहीं रह सकता। इसी प्रकार छानबीन करके लगाया गया संरक्षण शुल्क यदि वापस नहीं लिया जाता तो लगाने की तिथि से अधिकतम चार वर्ष तक लागू रहेगा। यदि केन्द्रीय सरकार चाहे तो इस अवधि को पुनः बढ़ा सकती है, परन्तु यह कुल अवधि दस वर्ष से अधिक नहीं होगी। यह शुल्क अन्य सीमा शुल्कों से अतिरिक्त होगा।

(5) चीन से आयात पर उत्पाद विशिष्ट (Product Specific) संरक्षण शुल्क- यदि केन्द्रीय सरकार उचित जाँच करके सन्तुष्ट हो जाती है कि किसी वस्तु का चीन से भारत में अधिक मात्रा में और ऐसी दशाओं में आयात किया जा रहा है जिससे घरेलू बाजार को खतरा उत्पन्न हो गया है तो वह अधिसूचना जारी करके संरक्षण शुल्क लगा सकती है। इस सम्बन्ध में अन्य प्रावधान वही है जो धारा 8(B) में बताए गए हैं।

(6) निर्यात शुल्क (Export Duty)-  सामान्यतः निर्यात पर कोई शुल्क नहीं लिया जाता है, बल्कि इसे प्रोत्साहन किया जाता है। विदेशों से जो माल आयात होता है, उस पर विक्रय कर या वेठ नहीं लग पाता है, जबकि भारत में निर्मित माल के विक्रय पर विक्रय कर या वेट (VAT) लगता है। ऐसी स्थिति में विक्रय कर की प्रतिपूर्ति के लिए जो शुल्क लगाया जाता है, उसे विशेष अतिरिक्त सी शुल्क (Special Excise Duty) कहते हैं।

सीमा शुल्क अधिनियम के अन्तर्गत आयात व निर्यात पर निषेध Prohibitions on Imports and Exports Under Custom Act–

कस्टम एक्ट 1962 की धारा 11 केन्द्र सरकार को यह अधिकार देती है कि वह सरकारी गजट में अधिसूचित करके विशेष रूप से वर्णित माल के आयात या निर्यात पर रोक लगा सकती है। जिन उद्देश्यों के लिए ऐसी रोक लगायी जा सकती है वे निम्नलिखित है

1. भारत की सरक्षा बनाये रखने के लिए।

2. लोकादेश व मर्यादा या नैतिकता का स्तर बनाये रखने के लिए।

3. तस्करी रोकने के लिए।

4 किसी भी वर्णन के माल की अल्पता को रोकने के लिए।

5. विदेशी मुद्रा को बचाने तथा भुगतान संतुलन को सुरक्षित बनाये रखने के लिए।

6. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वस्तु के वर्गीकरण तथा विपणन के स्तर को बनाये रखने के लिए।

7 किसी उद्योग की स्थापना के लिए।

8. मनुष्य, जानवर या वृक्षों के जीवन या स्वास्थ्य के बचाव हेतु

9. कलात्मक, ऐतिहासिक या पुरातत्व के महत्व की सम्पदा की रक्षा के लिए।

10. खत्म होने वाले प्राकृतिक स्रोतों की रक्षा के लिए।

11 पेटेन्ट, ट्रेडमार्क व कापीराइट की रक्षा के लिए।

12. कपटपूर्ण व्यवहारों को रोकने के लिए।

13. संयुक्त राष्ट्र के शांति व सुरक्षा के अधिकार पत्र के निर्देशों का पालन करने हेतु।

14. किसी भी कानून के उल्लंघन के लिए जो लोकहित के लिए बनाया गया है।

 

जैसे की दोस्तों यदि आप यह पढ़ रहे है तो मै उम्मीद करता हु, ऊपर दिए गए सारे दिए हुए इनफार्मेशन को तो पढ़ा ही होगा यदि आपको मेरी यह पोस्ट अच्छी लगी होगी तो इस पोस्ट को दोस्तों और करीबी लोगो के साथ व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक में शेयर करें। इस वेबसाइट पर हम आपके समस्याओ के समाधान से जुड़ी पूरी जानकारी उपलब्ध कराते हैं। तथा नए आवेदन की जानकारी देते रहते है, अगर आप भविस्य में भी हमारे साइट से जुड़े रहना चाहते हो तो नई जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो गूगल सर्च बॉक्स में सर्च करें या आगे Click करे KnowledgeAdda.Org  धन्यवाद!

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    Ashok Kumar Gupta

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