कोयले की कमी से मध्य प्रदेश में बढ़ती बिजली कटौती | Increasing power cuts in Madhya Pradesh due to shortage of coal

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koyale kee kamee se madhyapradesh mein badhatee bijalee katautee | Increasing power cuts in Madhya Pradesh due to shortage of coal

कोयले की कमी से मध्य प्रदेश में बढ़ती बिजली कटौती | Increasing power cuts in Madhya Pradesh due to shortage of coal

कोयले की कमी से बिजली कटौती- मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश में बिजली संकट गहराता जा रहा है। आलम ये है कि मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी के चार बिजली घरों में से तीन में कोयले का संकट खड़ा हो गया है। यहां प्रतिदिन 80 हजार टन कोयले की जरूरत है, लेकिन उसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है। रेलवे से एक दिन भी सप्लाई बाधित होगी, तो प्रदेश में अंधेरा छा जाएगा। मौजूदा समय में बिजली की डिमांड 12 हजार मेगावाट (12000MW) से ऊपर बनी हुई है। सप्लाई 11 हजार मेगावाट (11000 MW) ही कर पा रहे हैं। बिजली कटौती कर इस गेप को कवर किया जा रहा है।

बिजली के टैरिफ (Tariff) निर्धारण में उपभोक्ताओं से 30 दिन के कोयला स्टॉक (Coal Stock) का पैसा लिया जाता है। मतलब, बिजली घरों में उनकी क्षमता के अनुरूप 30 दिन का कोयला रखेंगे। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के मानक के अनुसार पिटहेट (प्लांट और कोयला खदान की दूरी 25 किमी से कम) पर 17 दिन का स्टॉक और नान पिटहेड (प्लांट और कोयला खदान की दूरी 25 किमी से अधिक होने पर ) 26 दिन का कोयला स्टॉक रखना चाहिए। अमरकंटक को छोड़कर सभी बिजली घरों में 26 दिन का न्यूनतम कोयला स्टॉक (Min Coal Stock)  होना चाहिए।

प्रदेश के बिजली घरों को कहां से मिलता है कोयला

प्रदेश के बिजली घरों को WCL (Western Coalfield Limited ) और SECL (South Eastern Coalfields Ltd.) से कोल ब्लॉक (Coal Block) आवंटित है। सारणी (Sarni) बिजली घर को WCL के Pathakheda, कान्हान, पेंच, नागपुर, चंद्रपुर व वी से रेल, सड़क व कन्वेयर बेल्ट से कोयले की सप्लाई होती है। अमरकंटक के बिजली घर को SECL के सोहागपुर कोल ब्लॉक से रेल के जरिए कोयला मिलता है। संजय गांधी बिरसिंहपुर बिजली घर को SECL के कोरिया, रीवा व कोरबा कोल ब्लॉक से रेल के जरिए कोयला मिलता है। वहीं सबसे बड़े प्लांट श्री सिंगाजी को SECL के विभिन्न ब्लॉक से कोयले की सप्लाई ट्रेन के माध्यम से होती है।

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अपनी नाकामी को छुपा रेलवे को चिन्हित किया – 

मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी को प्लांटों की जरूरत के अनुसार कोयले का इंतजाम करना चाहिए। जब बिजली की डिमांड बढ़ गई, तो वे अपनी नाकामी का ठीकरा रेलवे के सिर फोड़ रहे हैं। कंपनी ने कोयले की कमी का कारण बताया है कि रेलवे कोयला ढुलाई के लिए रैक नहीं उपलब्ध करा पा रहा है। इसकी वजह से उसके प्लांटों में कोयले की भारी कमी है। रेलवे ने कोयले की सप्लाई बढ़ाने के लिए देश भर में 750 मेल, एक्सप्रेस और अन्य यात्री ट्रेनों को रद्द करने का निर्णय लिया है।

तो प्रदेश को बिजली खा से मिल रही –

प्रदेश को 9200 मेगावाट (MW) बिजली कोयला आधारित ताप विद्युत गृह से और 1800 मेगावाट जल, सोलर और विंड सहित अन्य तरीके से उत्पादित बिजली मिल पा रही है। इसमें मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी के अंतर्गत आने वाले जल विद्युत गृहों से 225 मेगावाट बिजली ही मिल पा रही है। 3600 मेगावाट के लगभग प्रदेश के कोयला आधारित प्लांटों से बिजली मिल पा रही है। वहीं, 1300 के लगभग पवन, सोलर आदि माध्यम से बिजली मिल रही है। शेष 5500 से 6 हजार मेगावाट के लगभग बिजली NTPC से मिल रही है। NTPC के प्लांट भी कोयला आधारित बिजली बनाते हैं।

एक से डेढ़ हजार मेगावाट की भरपाई के लिए कटौती प्रदेश में बिजली की मांग और सप्लाई में एक से डेढ़ हजार मेगावाट का गैप आ रहा है। इसकी भरपाई कई शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में 8 से 10 घंटे की अघोषित कटौती करके की जा रही है। कृषि फीडर में एक तरह से बिजली की सप्लाई बंद कर दी गई है। ग्रामीणों को भी पीक आवर्स में दोपहर और शाम को बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है।

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बिजली संकट के लिए कौन जिम्मेदार –

सरप्लस मध्यप्रदेश में ये संकट अधिकारियों के नकारेपन से खड़ा हुआ है। 22 हजार मेगावाट की क्षमता का ढिंढोरा पीटने वाले प्रदेश में 12 हजार मेगावाट की सप्लाई नहीं कर पा रहे हैं। अधिकारियों ने NTPC से मिलने वाली एमपी के हिस्से की खरगोन की 330 मेगावाट, सोलापुर की 295 मेगावाट और मोदा ( Maharastra) 375 मेगावाट बिजली सरेंडर कर परेशानी आमंत्रित की।

वहीं, सारणी की यूनिट क्रमांक 6, 7, 8, 9 को सरकार की बिना अनुमति बंद कर दिया गया। चारों यूनिटों को स्क्रैप घोषित कर दिया गया। इससे 830 मेगावाट की सप्लाई कम हो गई, जबकि वर्ष 1980-84 के बीच बनी इन यूनिटों के साथ ही चालू हुए NTPC व छत्तीसगढ़ के प्लांट से बिजली बन रही है।

क्षमता से कम जल और रिन्यूएबल एनर्जी का उत्पादन प्रदेश में 3438 मेगावाट सोलर एनर्जी से टारगेट है, जबकि उत्पादन 1500 मेगावाट के लगभग हो पाता है। इसी तरह, विंड समेत बायोगैस से 2542 मेगावाट क्षमता की बजाय वास्तविकता में 2375 मेगावाट ही बिजली बन पाती है। इसी तरह, 715 मेगावाट जल विद्युत की क्षमता में वास्तविक तौर पर 225 मेगावाट ही बिजली बन पाती है। टोंच बाणसागर की 210 मेगावाट की दो यूनिट, बाणसागर देवलोन की 60 मेगावाट, मड़िखेड़ा की 60 मेगावाट, राजघाट की 45 मेगावाट की यूनिट बंद पड़ी हैं।

प्रोडक्शन घटने में क्या समस्याएं है –

प्रदेश के पावर प्लांटों के लिए जरूरी कोयले की उपलब्धता में दो परेशानी आ रही है। एक तो कोल प्रोडक्शन कम हुआ है। दूसरी ओर रेलवे कोयला परिवहन के लिए जरूरी रैक नहीं उपलब्ध करा पा रहा है। जिसके बाद सड़क मार्ग से कोल परिवहन और 7.50 लाख टन कोयला इम्पोर्ट का टेंडर निकाला गया है।

MP में बिजली बनाने वाली यूनिट में कोयले के हालात Condition of coal in power generation unit in MP:

यूनिट (Unit) क्षमता (Capacity) रोजाना जरूरत (Daily Needs) इतना स्टॉक (Available Stock)
अमरकंटक ताप विद्युत गृह 210 मेगावाट (MW) 2.8 हजार टन 47.5 हजार टन
संजय गांधी बिरसिंहपुर 1340 मेगावाट (MW) 22.5 हजार टन 28.9 हजार टन
सारणी बिजली घर 1330 मेगावाट (MW) 18.2 हजार टन 55 हजार टन
सिंगाजी बिजली घर 2520 मेगावाट (MW) 36.3 हजार टन 129 हजार टन

 

FAQS-

कोयले की कमी से मध्य प्रदेश में बढ़ती बिजली कटौती | Increasing power cuts in Madhya Pradesh due to shortage of coal

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Ashok Kumar Gupta
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